मोहनीय कर्म
दर्शन-मोहनीय कर्म – “वस्तु, शरीर मेरा नहीं है” इस सत्य को स्वीकारता नहीं।
चारित्र-मोहनीय कर्म – “वस्तु, शरीर दूसरे का है” पर भोगूँगा मैं।
सत्य को स्वीकारता है पर मानता नहीं, ज्ञान में आने देता है पर पालन नहीं।
भरत चकवर्ती बाहुबली पर चक्र चलाना ग़लत मानते थे फिर भी चलाया।
मुनि श्री सुधासागर जी
One Response
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने मोहनीय कर्म के विषय में उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए मोहनीय कर्म का त्याग करना परम आवश्यक है!