मोह रूपी असावधानी से/अपनी ही सांसों से, अपना ही दीपक बुझ जाता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Share this on...
One Response
सामान्यतया सम्यग्दर्शन की बात करने वाले मोहनीय कर्म को मोह कहा गया है। यह कथन सत्य है कि मोह रुपी असावधानी से और अपनी सांसों से ही अपना दीपक बुझ जाता हैं।
One Response
सामान्यतया सम्यग्दर्शन की बात करने वाले मोहनीय कर्म को मोह कहा गया है। यह कथन सत्य है कि मोह रुपी असावधानी से और अपनी सांसों से ही अपना दीपक बुझ जाता हैं।