वर्तना
परिणमन को बनाये रखने की स्थिति वर्तना है।
परिणमन को समय सापेक्ष देखेंगे तो व्यवहार हो जायेगा, यदि सिर्फ परिणमन तो वर्तना/ निश्चय काल का विषय।
परिणमन स्वभाव या विभाव रूप होता है।
वर्तना को प्रवर्तना भी कहते हैं।
परिणाम व्यवहार का विषय है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/22)
3 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने वर्तना को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
1) परिणमन स्वभाव या विभाव रूप होता है। In dono ke examples denge, please ?
2) परिणाम व्यवहार का विषय है। Ise thoda aur explain karenge, please ?
1) दया का कम और ज्यादा होना स्वभाव में परिणमन, क्रोध में कम ज्यादा होना विभाव में।
2) तुम बचपन से युवा हुए, परिणाम जो हुआ यह व्यवहार हुआ। निश्चय से तो तुम्हारी आत्मा वही है जो बचपन में थी।