पर्याप्तक नामकर्म वाले जीव भी विग्रहगति में अपर्याप्तक रहते हैं।
पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
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विग़हगति—विग़ह का अर्थ शरीर है,पूर्व भव के शरीर को छोड़कर नवीन शरीर को ग्रहण करने के लिए जीव जो गमन करता है उसे विग़हगति कहते हैं,यह दो प्रकार की होती है-मोडे़ वाली गति और बिना मोड़े वाली गति होती है।
पर्याप्तक नाम कर्म वाले जीव भी विग़हगति में अपर्याप्तक रहते हैं।
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विग़हगति—विग़ह का अर्थ शरीर है,पूर्व भव के शरीर को छोड़कर नवीन शरीर को ग्रहण करने के लिए जीव जो गमन करता है उसे विग़हगति कहते हैं,यह दो प्रकार की होती है-मोडे़ वाली गति और बिना मोड़े वाली गति होती है।
पर्याप्तक नाम कर्म वाले जीव भी विग़हगति में अपर्याप्तक रहते हैं।