विनय तप
जो आत्मायें अपने गुणों को प्रकट करने की साधना में लगी हैं, उनके विनय प्रकट होती है।
चारित्र के पुट के साथ सम्यग्ज्ञान की पूज्यता बढ़ती जाती है, इसलिये ज्ञानी की विनय यानि ज्ञान की विनय।
अपने ज्ञान की विनय….विनयपूर्वक ज्ञान अर्जन करना।
शास्त्र में ज्ञान है सो शास्त्र की विनय भी ज्ञान की विनय है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी