घड़े में घी, इसमें घड़ा व्यवहार और निश्चय घी ।
बिना घड़े के घी रह नहीं पायेगा हालांकि सुगंध/ताकत/मूल्य घी का ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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One Response
निश्चय का तात्पर्य लक्षण होता है, यानी जो अभेद रुप से वस्तु का निश्चय होता है अर्थात वस्तु के जानने का द्वष्टिकोण जिसमें कर्ता,कर्म भाव एक दूसरे से भिन्न नहीं होते हैं। व्यवहार का मतलब संग्रह नय के द्वारा ग़हण किये पदार्थों का विधिपूर्वक भेद करना होता है। अतः निश्चय अटल होता है लेकिन व्यवहार के बिना कार्य सम्पन्न नहीं होता हैं
अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि घड़ा व्यवहार है जबकि घी निश्चय है, क्योंकि घड़े के बिना घी नहीं रह पाएगा, हालांकि सुगंध, ताकत और मूल्य घी का ही रहेगा।
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निश्चय का तात्पर्य लक्षण होता है, यानी जो अभेद रुप से वस्तु का निश्चय होता है अर्थात वस्तु के जानने का द्वष्टिकोण जिसमें कर्ता,कर्म भाव एक दूसरे से भिन्न नहीं होते हैं। व्यवहार का मतलब संग्रह नय के द्वारा ग़हण किये पदार्थों का विधिपूर्वक भेद करना होता है। अतः निश्चय अटल होता है लेकिन व्यवहार के बिना कार्य सम्पन्न नहीं होता हैं
अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि घड़ा व्यवहार है जबकि घी निश्चय है, क्योंकि घड़े के बिना घी नहीं रह पाएगा, हालांकि सुगंध, ताकत और मूल्य घी का ही रहेगा।