एक आसन/करवट/दंडाकार या धनुषाकार, न बने तो उठकर आत्मध्यान करना।
कठोर आसन पर बैठना/सोना।
सुख आनंद नहीं लेना।
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परिषह जय का तात्पर्य भूख प्यास आदि वेदना के होने से कर्मों की निर्जरा के लिए उसे समता पूर्वक सहन कर लेना कहलाता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। परिषह बाईस प़कार के होते हैं।शय्या परिषह जय से कर्मो की निर्जरा अवश्य होती है।
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परिषह जय का तात्पर्य भूख प्यास आदि वेदना के होने से कर्मों की निर्जरा के लिए उसे समता पूर्वक सहन कर लेना कहलाता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। परिषह बाईस प़कार के होते हैं।शय्या परिषह जय से कर्मो की निर्जरा अवश्य होती है।