श्रम
क्रम – ‘क’, ‘ख’, ‘ग’, ‘घ’।
पहले ‘क’ = कर्म,
फिर ‘ख’ = खाना,
‘ग’ = गाना,
‘घ’ = घंटा, जीवन झंकृत हो जायेगा।
पर हम व्यर्थ के कामों में ज्यादा श्रम करते हैं, सार्थक में कम।
सगर चक्रवर्ती राजा के पुत्रों ने बिना श्रम किये जीना नहीं चाहा था, इसलिये उन्होंने भरत चक्रवर्ती द्वारा निर्मित 72 मन्दिरों के चारौ ओर सुरक्षा के लिये ख़ुद खाई खोदी।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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श्रम का मतलब मेहनत करना होता है। अतः श्रम का जो विछेद किया गया है कि पहिले कर्म, फिर खाना फिर गाना,घंटा जीवन झंकृत हो जायेगा। अतः हम लोग व्यर्थ के जीवन में व्यय करते हैं, अतः जीवन में श्रम जितना कर सकते हों करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।