श्रावक चाहे क्षायिक-सम्यग्दृष्टि हो, तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर चुका हो या विद्याएँ सिद्ध कर चुका हो; और भले ही उस श्रमण के पास, जिसको वह आहार दे रहा है, ये उपलब्धियाँ न हों; फिर भी आहार लेते समय श्रमण को श्रावक से असंख्यात गुणी निर्जरा होती रहेगी।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने श्रावक एवं श्रमण की तुलना की गई है वह पूर्ण सत्य है! श्रावक को श्रमण की हर क़ियायों में सदैव मदद करना चाहिए ताकि श्रावक के जीवन का कल्याण हो सकता है!
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आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने श्रावक एवं श्रमण की तुलना की गई है वह पूर्ण सत्य है! श्रावक को श्रमण की हर क़ियायों में सदैव मदद करना चाहिए ताकि श्रावक के जीवन का कल्याण हो सकता है!