पाँचों ज्ञानों में सिर्फ श्रुतज्ञान ही स्वार्थ/ परमार्थ और द्रव्य/ भावश्रुत के भेद से 2 प्रकार का होता है ।
द्रव्यश्रुत ज्ञान जब भावश्रुत रूप परिणत हो जाता है तब निश्चय ज्ञान अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी कहलाता है
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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8 Responses
श्रुतज्ञान– सुने हुए चिंतन/ मन का विषय है इसलिए श्रुतज्ञान का विषय हुआ।श्रुत ज्ञान की उपयोग रुप दशा मन के निमित्त से होती है। अतः उक्त कथन सत्य है कि पांचों ज्ञानो में सिर्फ श्रुत ज्ञान ही स्वार्थ एवं परमार्थ और द़व्य एवं भाव श्रुत के भेद से 2 प़कार का होता है। द़व्य श्रुत ज्ञान जब भावश्रुत रुप परिणत हो जाता है तब निश्चय ज्ञान अभीक्षण ज्ञानोपयोगी कहलाता है।
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श्रुतज्ञान– सुने हुए चिंतन/ मन का विषय है इसलिए श्रुतज्ञान का विषय हुआ।श्रुत ज्ञान की उपयोग रुप दशा मन के निमित्त से होती है। अतः उक्त कथन सत्य है कि पांचों ज्ञानो में सिर्फ श्रुत ज्ञान ही स्वार्थ एवं परमार्थ और द़व्य एवं भाव श्रुत के भेद से 2 प़कार का होता है। द़व्य श्रुत ज्ञान जब भावश्रुत रुप परिणत हो जाता है तब निश्चय ज्ञान अभीक्षण ज्ञानोपयोगी कहलाता है।
“द्रव्यश्रुत” ,”स्वार्थ” ko aur “भावश्रुत”,”परमार्थ” ko, denote karta hai, na?
नहीं,
द्रव्यश्रुत शास्त्रों का अक्षर-ज्ञान,
भावश्रुत अक्षर ज्ञान को आत्मसात करना ।
To “asangi jeevon” ko kaise “bhaav-shrut” hota hai, as given in post below?
स्वार्थ श्रुतज्ञान असंज्ञियों को होगा, उसमें द्रव्य तथा भाव दोनों होंगे।
“उसमें द्रव्य” kaise hoga?
श्रुत जब अक्षर रूप हो तथा क्षयोपशमिक ज्ञान को भी द्रव्य रूप श्रुत कहते हैं ।
Okay.