ठंडी सहने को संकल्प तथा अभ्यास चाहिये, गर्म खून नहीं।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
Share this on...
2 Responses
मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ठंडी सहने के लिए संकल्प तथा अभ्यास चाहिए, गर्म खून नहीं! अतः जीवन के कल्याण के लिए किसी भी कठिन कार्य के लिए संकल्प एवं अभ्यास करना चाहिए!
तप करना है तो ठंड सहने का संकल्प चाहिए।
रण करना है तो गरम खून चाहिए।
धीरज रखना है तो ठंडा खून चाहिए।
क्रोध की जरूरत हो तो खोलता खून चाहिए।
विवेक और वक्त के साथ खून की तासीर बदलते रहना चाहिए।
2 Responses
मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि ठंडी सहने के लिए संकल्प तथा अभ्यास चाहिए, गर्म खून नहीं! अतः जीवन के कल्याण के लिए किसी भी कठिन कार्य के लिए संकल्प एवं अभ्यास करना चाहिए!
तप करना है तो ठंड सहने का संकल्प चाहिए।
रण करना है तो गरम खून चाहिए।
धीरज रखना है तो ठंडा खून चाहिए।
क्रोध की जरूरत हो तो खोलता खून चाहिए।
विवेक और वक्त के साथ खून की तासीर बदलते रहना चाहिए।
डा.आर.के.जैन – शिवपुरी