प्राप्त/अप्राप्त को इंद्रिय/मन के द्वारा विषयों की खोज/पाना/बढ़ाना ही संसार है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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संसार- – संसरण आवागमन करने को कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि जीवन में प्राप्त और अप़ाप्त इन्द्रिय और मन के द्वारा विषयों की खोज,पाना और बढ़ाना ही संसार है।
इंद्रियां और मन लगातार उन विषय-भोग, जो उनको प्राप्त हो सकते अथवा पहुंच से बाहर हैं, उनकी खोज में लगे रहते हैं/ भोगते रहते हैं तथा उनको बढ़ाने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं ।
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संसार- – संसरण आवागमन करने को कहते हैं।
अतः यह कथन सत्य है कि जीवन में प्राप्त और अप़ाप्त इन्द्रिय और मन के द्वारा विषयों की खोज,पाना और बढ़ाना ही संसार है।
Can its meaning be explained please?
इंद्रियां और मन लगातार उन विषय-भोग, जो उनको प्राप्त हो सकते अथवा पहुंच से बाहर हैं, उनकी खोज में लगे रहते हैं/ भोगते रहते हैं तथा उनको बढ़ाने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं ।
Okay.