सराग/वीतराग सम्यग्दृष्टि

सराग सम्यग्दृष्टि    – जिनकी श्रद्धा और करनी में अंतर हो,
वीतराग सम्यग्दृष्टि – इनकी श्रद्धा और करनी में फर्क ना हो ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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  1. सम्यग्दर्शन—सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्वान है, अथवा जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा कहे गए सात तत्त्वों के यथार्थ श्रद्वान को कहते हैं। वीतराग—आत्म साधना के द्वारा जिन्होंने राग द्वेष को नष्ट कर दिया है उन्हें वीतराग कहते हैं।
    अतः यह कथन सत्य है कि सराग सम्यग्दृष्टि-जिनकी श्रद्वा और करनी में अंतर होता है जबकि वीतराग सम्यग्द्वष्टि-वीतराग जिनकी श्रद्वा और करनी में अंतर नहीं होता है।

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