सल्लेखना अंत समय आने पर विधिपूर्वक आहार तथा क्रोधादि को कम करते करते शरीर छोड़ना ।
समाधि व्यवहार में सल्लेखना को कहते हैं, पर समताभाव के साथ ध्यानस्थ अवस्था को भी समाधि कहा जाता है ।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
उपरोक्त कथन सत्य है कि संल्लेखना अंत समय आने पर विधिपूर्वक आहार तथा क़ोधादि को कम करते करते शरीर छोड़ना होता है। जबकि समाधि व्यवहार में सल्लेखना को कहते हैं,पर समता भाव के साथ ध्यानस्थ अवस्था को भी समाधि कह सकते हैं। जीवन में सल्लेखना हर साधु 10 या 15 वर्ष पूर्व सोच लेते हैं,सल्लेखना हमेशा किसी भी मुनिराज के समीप ही लेते हैं।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि संल्लेखना अंत समय आने पर विधिपूर्वक आहार तथा क़ोधादि को कम करते करते शरीर छोड़ना होता है। जबकि समाधि व्यवहार में सल्लेखना को कहते हैं,पर समता भाव के साथ ध्यानस्थ अवस्था को भी समाधि कह सकते हैं। जीवन में सल्लेखना हर साधु 10 या 15 वर्ष पूर्व सोच लेते हैं,सल्लेखना हमेशा किसी भी मुनिराज के समीप ही लेते हैं।
“समताभाव के साथ ध्यानस्थ अवस्था” को jeeteji bhi समाधि kahenge?
वैष्णव परम्परा में ऐसी मान्यता है ।
Okay.