योद्धा दुश्मन को जीतने के लिये तन, मन, वचन सब लगाकर जीत तो लेता है पर उसका इहभव और परभव द्वेषपूर्ण होते हैं।
क्षपक सब कुछ दांव पर लगाकर कर्म रूपी दुश्मन को जीतता भी है और दोनों भव शांतिपूर्ण/ वीतरागता सहित होते हैं ।
क्षु. श्री जिनेंद्र वर्णी जी
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सल्लेखना को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। सल्लेखना शान्ति पूर्ण एवं वीतरागता सहित होना परम आवश्यक है। इसी प्रकार श्रावकों को समाधि मरण के भाव रखना परम आवश्यक है।
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सल्लेखना को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। सल्लेखना शान्ति पूर्ण एवं वीतरागता सहित होना परम आवश्यक है। इसी प्रकार श्रावकों को समाधि मरण के भाव रखना परम आवश्यक है।