सांसारिक सुख

स्व. श्री होतीलाल जी (वरवाना) कई गांवों के जमींदार थे । उनके सेवक जब कोई गलती करते तो आप जूते उतार कर उनकी पिटाई कर देते थे । जब सेवक रोने लगते तो उनको मिठाई खाने को पैसे दे देते थे । सेवक बाहर जाकर खुश होकर मिठाई खाते और सबको बड़े गर्व से बताते कि मालिक ने आज जूतियाँ लगाईं ।

क्या सांसारिक सुख इसी तरह की मिठाई नहीं है जो बड़े दुख और अपमान के बाद थोड़ा सा इंद्रिय सुखाभास देती है ?

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One Response

  1. This is great.
    anyway,
    we have got into a
    HABIT
    as described above
    and everyone loves their Habits.

    HariBol.

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