सामायिक नियत समय वाली तथा अनियत समय वाली भी, जिसमें हर समय समताभाव रखे जाते हैं ।
सामायिक निवृत्तियात्मक होती है,
स्वाध्याय प्रवृत्तियात्मक ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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सामायिक- – समता भाव रखना होता है।श्रावक और साधु दोनों को करना आवश्यक है।श्रावक प्रतिदिन नियतकाल पर्यन्त व़त या प़तिमा के रूप में सामायिक का अभ्यास करता है। साधु का जीवन समतामय है फिर भी सदा समता रुप प़तिदिन सुबह, दोपहर और शाम इन तीनों संध्याकालो में कमसे कम दो घड़ी और अधिकतम छह घड़ी तक की जाती है।
स्वाध्याय- – आत्महित की भावना से सत-शास्त्र का वाचन करना,मनन करना या उपदेश देना स्वाध्याय है। अतः उक्त कथन सत्य है कि सामायिक नियत समय वाली तथा अनियत समय वाली भी, जिसमें समता भाव रखे जाते हैं। सामायिक निवृत्तियात्मक होती है और स्वाध्याय प्रवृत्तियात्मक होती है।
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सामायिक- – समता भाव रखना होता है।श्रावक और साधु दोनों को करना आवश्यक है।श्रावक प्रतिदिन नियतकाल पर्यन्त व़त या प़तिमा के रूप में सामायिक का अभ्यास करता है। साधु का जीवन समतामय है फिर भी सदा समता रुप प़तिदिन सुबह, दोपहर और शाम इन तीनों संध्याकालो में कमसे कम दो घड़ी और अधिकतम छह घड़ी तक की जाती है।
स्वाध्याय- – आत्महित की भावना से सत-शास्त्र का वाचन करना,मनन करना या उपदेश देना स्वाध्याय है। अतः उक्त कथन सत्य है कि सामायिक नियत समय वाली तथा अनियत समय वाली भी, जिसमें समता भाव रखे जाते हैं। सामायिक निवृत्तियात्मक होती है और स्वाध्याय प्रवृत्तियात्मक होती है।