देव अष्टानिका की अखंड पूजा के बाद 9वें दिन नंदीश्वर-द्वीप की परिक्रमा करके भक्ति में ऐसे घुल-मिल जाते हैं कि भक्ति के रंग बाहर दिखने लगते हैं ।
होली यानि नंदीश्वर-द्वीप पूजा/ विधान की पूर्णता ।
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
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मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि देव अष्टानिका की अखंड पूजा के बाद 9वें दिन नंदीश्वर द्वीप की परिक्रमा करके भक्ति में ऐसे घुल मिल जाते हैं कि भक्ति के रंग बाहर दिखने लगते हैं। होली यानी नंद्वीश्वर दीप पूजा और विधान की पूर्णता होती है। अष्टनिका वर्ष में तीन बार आती है, इसमें मनुष्य भी सिद्धच़क का विधान करते हैं, इसके करने के बाद जीवन का कल्याण करते हैं। होली पर भी विधान करते हैं,इसकी पूर्णता के बाद आनन्द के रंगों में डूब कर प़संनता के भाव प़कट करते हैं।
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मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि देव अष्टानिका की अखंड पूजा के बाद 9वें दिन नंदीश्वर द्वीप की परिक्रमा करके भक्ति में ऐसे घुल मिल जाते हैं कि भक्ति के रंग बाहर दिखने लगते हैं। होली यानी नंद्वीश्वर दीप पूजा और विधान की पूर्णता होती है। अष्टनिका वर्ष में तीन बार आती है, इसमें मनुष्य भी सिद्धच़क का विधान करते हैं, इसके करने के बाद जीवन का कल्याण करते हैं। होली पर भी विधान करते हैं,इसकी पूर्णता के बाद आनन्द के रंगों में डूब कर प़संनता के भाव प़कट करते हैं।