यह द्वादशांग का आठवाँ अंग है।
इसमें हर तीर्थंकर के काल के दस-दस अंत:कृत केवलियों के उपसर्ग आदि का वर्णन है।
जैसे भगवान महावीर के काल में प्रसिद्ध केवली सेठ सुदर्शन जी हुए।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 357)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अंतःकृतांग का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अंतःकृतांग का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!