1. सब जीवों में सामान्य गुण….जो उस द्रव्य के गुणों को बदलने नहीं देता, अपनी-अपनी पर्याय में ही परिणमन करता है।
2. नाम कर्म का भेद…. जो शरीर को न हल्का होने दे न भारी।
3. सिद्धों में…. गोत्र कर्म के अभाव से जो गुण प्रकट होता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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5 Responses
अगुरुलघु का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से जीव न तो लोहपिन्ड के समान भारी होकर नीचे गिरता है,इसी प्रकार न तो रुई के समान हल्का होकर उपर उड सकता है। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि सब जीवों में सामान्य गुण यानी उस द़व्य के गुणों को बदलने नहीं देता है,यह सब अपनी अपनी पर्याय मे परिणमन करता है। इसके अलावा नाम कर्म का भेद जो शरीर को न हल्का न ही भारी होने देता है। इसके अतिरिक्त सिद्धों में गोत्र कर्म के अभाव से जो गुण प़कट होता है।
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अगुरुलघु का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से जीव न तो लोहपिन्ड के समान भारी होकर नीचे गिरता है,इसी प्रकार न तो रुई के समान हल्का होकर उपर उड सकता है। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि सब जीवों में सामान्य गुण यानी उस द़व्य के गुणों को बदलने नहीं देता है,यह सब अपनी अपनी पर्याय मे परिणमन करता है। इसके अलावा नाम कर्म का भेद जो शरीर को न हल्का न ही भारी होने देता है। इसके अतिरिक्त सिद्धों में गोत्र कर्म के अभाव से जो गुण प़कट होता है।
2) aur 3) kya ‘अगुरुलघु’ ke ‘vishesh’ गुण
hain ?
सही
‘सिद्धों ‘ me ‘अगुरुलघु’ ko kaise visualize karen?
Visualise करना तो सम्भव नहीं, बस श्रद्धा का विषय है।
For details see अगला-कदम 2sep and 30jan 22.