अनुभय / उभय

कार्य जिस‌ रूप तो कारण भी उसी रूप।
श्रोता में अनुभय तो भगवान (अरहंत) में भी घटित होगा।
उभय में चूंकि असत्य भी है इसलिये ये अरहंतों में नहीं।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा – 229)

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7 Responses

  1. मुनि महाराज जी ने अनुभव एवं उभय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!

    1. कहा है न! अरिहंतों में झूठ नहीं होता यानी गृहस्थों में होता है।

  2. Iska matlab, upar waale example me, ‘उभय(असत्य)’ ke case me, ‘कार्य जिस‌ रूप तो कारण भी उसी रूप’ घटित nahi hoga lekin ‘उभय(सत्य)’ ke case me घटित hoga?

    1. सही
      कारण!
      भगवान के उभय उपचार से भी घटित करने में दोष लगेगा।

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