अनुभय-वचन

अनुभय-वचन विकलेंद्रियों के तथा संज्ञी के आमंत्रणादि रूप में होते हैं।
विकलेंद्रियों के वचन तो हैं पर हमें समझ नहीं आते/ अर्थक्रिया पकड़ में नहीं आतीं।
ऐसे ही बालक के लिये हमारी भाषा।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा – 221)

Share this on...

4 Responses

  1. मुनि श्री महाराज जी का अनुभव वचनों का विवरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!

  2. ‘अनुभय-वचन विकलेंद्रियों के तथा संज्ञी के आमंत्रणादि रूप में होते हैं।’ Can meaning of this be clarified, please ?

    1. अनुभय यानि न सत्य, न असत्य।
      विकलेंद्रियों के तथा संज्ञीओं के निमंत्रणादि में सत्य या असत्य होगा ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

April 1, 2023

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930