मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी का अनेकांत की परिभाषा की गई है वह पूर्ण सत्य है! जैन धर्म का मूल सिद्वांत अनेकांत ही है! एकांत वाले कभी अपना कल्याण नहीं कर सकते हैं!
अनेकांत में उल्टा भी कथंचित सत्य होता है। दोनों opposite होते हुए भी एक ही समय में सत्य, अपेक्षा लगाने से ही सम्भव हो सकते हैं जैसे abortion कराना भी सही है, माँ की जान बचाने की अपेक्षा।
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मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी का अनेकांत की परिभाषा की गई है वह पूर्ण सत्य है! जैन धर्म का मूल सिद्वांत अनेकांत ही है! एकांत वाले कभी अपना कल्याण नहीं कर सकते हैं!
‘अपेक्षा सहित’ ka kya meaning hai, please ?
अनेकांत में उल्टा भी कथंचित सत्य होता है। दोनों opposite होते हुए भी एक ही समय में सत्य, अपेक्षा लगाने से ही सम्भव हो सकते हैं जैसे abortion कराना भी सही है, माँ की जान बचाने की अपेक्षा।
Okay.