अनेकांत

अनेकांत अनेक दृष्टिकोंण नहीं, अनिर्णयात्मक भी नहीं,
बल्कि समग्र (पूर्ण) दृष्टि ।

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4 Responses

  1. अनेकांतवाद जैन धर्म का मूल सिद्धांत है। अनेकांत एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्मों की प्रतीति को कहते हैं। एक व्यक्ति पिता पुत्र भाई आदि अनेक रुपों में दिखाई देता है।इसी प्रकार अनेक धर्मों से समविन्त है।
    अतः उक्त कथन सत्य है कि अनेकांत अनेक द्वष्टिकोण नहीं,अनिर्णयात्मक भी नहीं, बल्कि समग़ द्वष्टि है।

    1. ” अनेक द्रष्टिकोंण ” कहने से अनेकांतवाद को सम्यक् रूप समझा/कहा नहीं जा सकता है,
      जैसे सत्य को कहने के अनेक द्रष्टिकोंण, सत्य की सही व्याख्या होगी या जो निर्णयात्मक व समग्र!

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