अपनी पहचान
एक समृद्ध गुरुकुल खुला। जो भी पढ़ने आता उससे एक ही प्रश्न किया जाता – “तुम कौन हो?”
आगे वाले बच्चे नाम बताते।
योग्य नहीं हो।
पिछले वाले जबाब बदल देते –> मैं आत्मा हूँ।
तुम तो अधिक गलत हो, पहले वाले अनुभव पर तो आधारित थे।
सालों बाद एक ने जबाब दिया –> “यही जानने तो यहाँ आया हूँ ।”
सालों से गुरुकुल का यही विद्यार्थी रहा।
ब्र. (डॉ.) नीलेश भैया