अपरिग्रह

अपरिग्रह जैनियों का विशेष धर्म है, पर Followers परिग्रही क्यों ?

सिद्धांत को तो मानते हैं । पर सामाजिक मूल्य भी आजकल वैभव से तौले जाते हैं सो वैभव को महत्व ज्यादा दिये जाने लगा ।
जैन धर्म को मानने वाले संग्रह तो करते हैं पर परिग्रही कम, क्योंकि दान करके अनुग्रहीत होते हैं जैसे भामाशाह, जगड़ूशाह आदि ।
साधक पूर्णरूप से Follow भी करते हैं ।

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One Response

  1. परिग़ह का मतलब यह मेरा हैं, मैं इसका स्वामी हूं,इस प्रकार का ममत्व भाव ही परिग़ह है। अपरिग्रह- -अंतरग में ममत्व भाव का और बाह्म में धन पैसा,स्त्री,पुत्र आदि समस्त परिग़ह का त्याग करना है। अतः अपरिग्रह जैनियों का विशेष धर्म है। लेकिन परिग़ही को ज्यादा मानते हैं।इसका मतलब जैन धर्म के सिद्धांतों को मानते हैं लेकिन समाजिक मूल्यों के कारण धन संग्रह करते हैं लेकिन दान करके अनुग़हीत होते हैं जैसे भामाशाह आदि। लेकिन पूर्ण रुप से अपरिग्रह के लिए ममत्व त्याग करना अनिवार्य है।

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