अमूर्तिक-द्रव्य, इंद्रियातीत पर ज्ञानगम्य (मति,श्रुत से भी) होते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मति/श्रुत-ज्ञान, इंद्रियों के माध्यम से ही नहीं, मन के माध्यम और आज्ञा-विचय से भी समझा जाता है ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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मतिज्ञान- -इन्दिय व मन की सहायता से होने वाले ज्ञान मति ज्ञान है। मूर्त –जो पदार्थ इन्द्रिय ग़ाह्य है वे मूर्त है अथवा जिसमें रुप,रस आदि गुण पाए जाते हैं वह मूर्त है।छह द्रव्यों में एक मात्र पुदगल द़व्य मूर्त या रुपी है।
अतः यह कथन सत्य है कि अमूर्तक द़व्य,इन्दियातीत पर ज्ञानगम्य एवं मति श्रुत से भी होते हैं। अतः मति श्रुत ज्ञान इन्द्रियों के माध्यम से नहीं बल्कि मन के माध्यम और आज्ञा विचय से भी समझा जाता है।
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मतिज्ञान- -इन्दिय व मन की सहायता से होने वाले ज्ञान मति ज्ञान है। मूर्त –जो पदार्थ इन्द्रिय ग़ाह्य है वे मूर्त है अथवा जिसमें रुप,रस आदि गुण पाए जाते हैं वह मूर्त है।छह द्रव्यों में एक मात्र पुदगल द़व्य मूर्त या रुपी है।
अतः यह कथन सत्य है कि अमूर्तक द़व्य,इन्दियातीत पर ज्ञानगम्य एवं मति श्रुत से भी होते हैं। अतः मति श्रुत ज्ञान इन्द्रियों के माध्यम से नहीं बल्कि मन के माध्यम और आज्ञा विचय से भी समझा जाता है।