अरहंत के ध्यान व लेश्या
अरहंत के ध्यान व लेश्या उपचार से कहे हैं।
क्योंकि ध्यान तो मन से एकाग्रचित्त होने को कहा, पर मन(भाव) है नहीं तथा एकाग्रचित्त हो नहीं सकते क्योंकि अनंत द्रव्य/ पर्याय एक साथ दिख रही हैं।
पर कर्मों की निर्जरा हो रही है सो कार्य के लिये कारण बताया है।
कषाय भी समाप्त हो चुकी है सो लेश्या भी उपचार से कही है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी