अरिहंत / छिन्न-भिन्न
श्री षटखंड़ागम में “अरिहंत” लिखा है – यानि बैरी(कर्म) को क्षय करने वाले ।
“छिन्न-भिन्न” भी कर्म आदि के क्षय के लिए प्रयोग हुआ है ।
दोनों शब्दों में हिंसा के भाव नहीं हैं ।
मुनि श्री सुधा सागर जी
श्री षटखंड़ागम में “अरिहंत” लिखा है – यानि बैरी(कर्म) को क्षय करने वाले ।
“छिन्न-भिन्न” भी कर्म आदि के क्षय के लिए प्रयोग हुआ है ।
दोनों शब्दों में हिंसा के भाव नहीं हैं ।
मुनि श्री सुधा सागर जी
8 Responses
उक्त कथन सत्य है कि छिन्न भिन्न बोलने से कर्म आदि की क्षय की भावना है इसमें किसी की हिंसा नहीं है। यह शान्ती धारा में मंत्र बोला जाता है, जिसमें हर प्राणी के कर्मों का नष्ट करके जगत में सुख शांति रहें यही भावना निहित हैं।
“दोनों की हिंसा नहीं” me hum kiski baat kar rahe hain?
Item की भाषा change की, अब clear है ?
“दोनों की हिंसा नहीं” me kin donon ki baat ho rahi hai?
“अरिहंत” और “छिन्न-भिन्न” शब्दों में हिंसा के भाव नहीं है ।
“बैरी” yaani “कर्म” ki baat kar rahe hain, na?
हाँ,
बैरी यानि कर्म ।
Okay.