अवधि-ज्ञान की सीमा ज्यादा, मन:पर्यय ज्ञान की सीमा कम क्यों ?
लोहे की तराजू क्विंटल में नापती है, सोने/हीरे की ग्रामों में ।
मन:पर्यय, महत्वपूर्ण को सूक्ष्मता से जानता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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अवधि ज्ञान का तात्पर्य जो द़व्य, क्षेत्र काल आदि की सीमा में रहकर रुपी पदार्थों को प़त्यक्ष जानना है। मनःपर्याय का मतलब जो दूसरे के मन का आलम्बन लेकर उस मन में स्थित पदार्थ को स्पष्ट रूप से जान लेता है,यह ज्ञान रिद्धिधारी मुनि को होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अवधि ज्ञान की सीमा ज्यादा, जबकि मनःपर्याय की सीमा कम होती है क्योंकि मनःपर्याय, महत्वपूर्ण को सूक्ष्मता से जानता है।
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अवधि ज्ञान का तात्पर्य जो द़व्य, क्षेत्र काल आदि की सीमा में रहकर रुपी पदार्थों को प़त्यक्ष जानना है। मनःपर्याय का मतलब जो दूसरे के मन का आलम्बन लेकर उस मन में स्थित पदार्थ को स्पष्ट रूप से जान लेता है,यह ज्ञान रिद्धिधारी मुनि को होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि अवधि ज्ञान की सीमा ज्यादा, जबकि मनःपर्याय की सीमा कम होती है क्योंकि मनःपर्याय, महत्वपूर्ण को सूक्ष्मता से जानता है।