अशुचि

श्री रत्नकरंड श्रावकाचारानुसार → शरीर से स्पर्श होते ही वस्तु अपवित्र हो जाती है।
खुद अनुभव करें → हमारे शरीर के सम्पर्क में आयीं वस्तुओं (भोजन/ पानी आदि) का मूल्य शरीर के सम्पर्क में आने पर कम हो जाता है या बढ़ जाता है !!
हमारे सिर से छूकर आये जल को हम खुद छूना नहीं चाहते, जबकि मुनिराजों के चरण धोकर सिर पर लगाने को आतुर।
कारण ?
रत्नत्रय/ उनका हाथ उठता है आर्शीवाद के लिये, हमारा हिंसा के लिये। ऐसे ही हर अंग।
पर श्रावक धनादि का सदुपयोग करे तो कल्याण कर सकता है, अपने सम्पर्क के व्यक्तियों का उत्थान करके।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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One Response

  1. आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने अशुचि की परिभाषा का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! रत्नत्रय धारण करने वालों का हर जीव को उनका आशीर्वाद, सभी को फलता है! श्रावक धनाधि का सदुपयोग करने पर अपना कल्याण कर सकता है!

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