असाता

असाता को निर्झरित करने के लिये मुनि उसकी उदीरणा करके/उदय में लाकर/सहते हैं ।

मुनि श्री सुधासागर जी

(क्योंकि पंचमकाल में ऐसा घोर तप तो कर नहीं पाते कि सत्ता में रहते हुये समाप्त कर लें – पं. रतनलाल बैनाड़ा जी)

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One Response

  1. वेदनी-कर्म—जिस कर्म के उदय में जीव अनेक प्रकार के वेदन करता है उसे कहते हैं।
    उदीरणा—अपवन अर्थात नहीं पके हुए कर्मों को पकाना होता है। दीर्घकाल बाद उदय में आने के बाद कर्म को अपकर्षण करके उदय में लाकर उसका अनुभव कर लेना उदीरणा है। अतः यह कथन सत्य है कि असाता को निर्झारित करने के लिए मुनि उसकी उदीरणा करके और उदय में लाकर उसे सहते हैं।

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