आचार

दर्शन, ज्ञान, चारित्राचार के बाद तपाचार (निर्जरा में तेजी के अलावा) पहले तीनों को अभेद रूप करने के लिये आवश्यक है,
जैसे हलुए का स्वाद/सुगंधि लाने के लिये ताप ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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One Response

  1. उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार का मतलब दर्शन, ज्ञान, चारित्राचार के बाद तपाचार जो निर्जरा में तेजी के अलावा, पहिले तीनों को अभेद रुप करने के लिए आवश्यक है। जैसे हलूए का स्वाद और सुगन्धी लाने के लिए ताप होता है।

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