आत्मा का ज्ञान
निश्चय से ज्ञान अमूर्तिक है, पर आज हमारा ज्ञान कर्म के आवरण के कारण मूर्तिक है ।
तो मूर्तिक ज्ञान से अमूर्तिक आत्मा का अनुभव कैसे कर सकते हैं ?
हाँ ! मूर्तिक ज्ञान से मूर्तिक अक्षर (अर्हम्) का ध्यान कर सकते हैं ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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अमूर्तिक का तात्पर्य जिसमें रुप रस गंध और स्पर्श यह चारों गुण नहीं पाए जाते हैं। पुदगल द़व्य को छोड़कर शेष द़व्य अमूर्तिक या अरुपी होते हैं ।
इसके अलावा अर्हम् का मतलब पंचपरमेष्टि होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि निश्चय से ज्ञान अमूर्तिक है,पर हमारा ज्ञान कर्म के आवरण के कारण मूर्तिक है। मूर्तिक ज्ञान से अमूर्तिक आत्मा का अनुभव करने के लिए मूर्तिक अक्षर यानी अर्हम् यानी पंचपरमेष्ठी का ध्यान कर सकते हैं ।