संसारी अवस्था में आत्मा को जब अशुद्ध मानोगे, तभी तो आश्रव/बंध/निर्जरा तत्वों को मानोगे/उन पर विश्वास करोगे !!
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
Share this on...
One Response
आश्रव पुण्य पाप रुप कर्मों के आवागमन को कहते हैं।
बंध कर्मों का आत्मा के साथ श्रेत्रावागाह होना कहलाता है।
निर्जरा आत्मा से भले बुरे कर्मो का झड़ जाना होता है।
अतः यह कथन सत्य है कि जब आत्मा को संसारी अवस्था में अशुद्ध मानोगे तब ही आश्रव, बंध, निर्जरा तत्वों को मानोगे और उस पर विश्वास करोगे, तभी आत्मा को शुद्ध बना सकते हैं।
One Response
आश्रव पुण्य पाप रुप कर्मों के आवागमन को कहते हैं।
बंध कर्मों का आत्मा के साथ श्रेत्रावागाह होना कहलाता है।
निर्जरा आत्मा से भले बुरे कर्मो का झड़ जाना होता है।
अतः यह कथन सत्य है कि जब आत्मा को संसारी अवस्था में अशुद्ध मानोगे तब ही आश्रव, बंध, निर्जरा तत्वों को मानोगे और उस पर विश्वास करोगे, तभी आत्मा को शुद्ध बना सकते हैं।