आलोचना
आलोचना से लोचन खुलते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
इसलिये आलोचना का स्वागत करो (स्व+आगत)(अच्छे से बुलाना – पं.रतनलाल बैनाडा जी),
स्व का हितकारी/प्रिय मानकर ।
मुनि श्री सुधासागर जी
आलोचना से लोचन खुलते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
इसलिये आलोचना का स्वागत करो (स्व+आगत)(अच्छे से बुलाना – पं.रतनलाल बैनाडा जी),
स्व का हितकारी/प्रिय मानकर ।
मुनि श्री सुधासागर जी
One Response
उक्त कथन सत्य है कि आलोचना से लोचन यानी उस व्यक्ति की बुराइयों का पता लग जाता है, जिससे उसमें सुधार हो सकता है।
इसलिए आलोचना का स्वागत होना चाहिए जो स्वयं को हितकारी और प़िय मानना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।