आहार संज्ञा तो अनादि से है, पर आहार से पहले तथा बाद में रस ले ले कर कर्मबंध को बढ़ाओ तो मत ।
रस त्याग से संज्ञा में Break होता है/तीव्रता कम होती है ।
श्री रत्नसूरीश्वर जी
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आहार संज्ञा—अन्नादि आहार ग्रहण करने की इच्छा होना होता है। आहार संज्ञा तो अनादि से है,पर आहार से पहले तथा बाद में रस लेते हैं वह कर्मबंध को बढ़ाते हैं।
रस त्याग से संज्ञा में break होता है और तीव्रता कम होती है। अतः साधुओं को आहार संज्ञा का त्याग करना चाहिए ताकि मोक्ष की कामना सफल होती है ।
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आहार संज्ञा—अन्नादि आहार ग्रहण करने की इच्छा होना होता है। आहार संज्ञा तो अनादि से है,पर आहार से पहले तथा बाद में रस लेते हैं वह कर्मबंध को बढ़ाते हैं।
रस त्याग से संज्ञा में break होता है और तीव्रता कम होती है। अतः साधुओं को आहार संज्ञा का त्याग करना चाहिए ताकि मोक्ष की कामना सफल होती है ।