उत्तम आर्जव
आर्जव-धर्म यानी सरलता/ चिंतन कुछ संभाषण कुछ क्रिया कुछ की कुछ होती है।
कभी न कभी कपटी के पट खुलते ही हैं जैसे शकुनि मामा। इन लोगों के मन में असंतुष्टि और घबराहट बनी ही रहती है। दिखाने को यह औरों से ज्यादा सरलता दिखाते हैं जैसे खारा पानी ज्यादा शीतल होता है। पूजा आदि धार्मिक क्रियाओं में मन को कहीं और ले जाना/ देखना मायाचारी है।
संस्मरण… आचार्य श्री विद्यासागर महाराज मूकमाटी महाकाव्य लिख रहे थे। एक साधु-संतों से चिढ़ने वाला व्यक्ति आया और उनकी डायरी पलटने लगा। उसे रचना बहुत उत्कृष्ट लगी। उसने कहा क्या मैं इसे ले जाऊं ? आचार्य जी… मेरी होती तो मैं आज्ञा देता। वह चुपचाप ले गया। वह तो अच्छा हुआ बाहर किसी शिष्य ने देख लिया और वह उसका आशय समझ गए। उन्होंने फोटो कॉपी करा कर उसे दे दी। 3 माह बाद जब वह महाकाव्य छपा तो उस व्यक्ति के मन में पश्चाताप हो गया, आचार्य श्री का शिष्य बन गये।
मायाचारी खत्म करने के उपाय… तीन “एच” हार्ट में दया, हेड में विचार और हाथ से दान करके तीनों को पवित्र करें, सबसे अच्छा तरीका है अपने में रम जाना।
वैसे मायाचारी तो अजीवों में भी देखी जाती है ऐसे काँच का हीरे जैसा दिखना, मच्छर कानों में जैसे गुणगान कर रहे हों, वनस्पति मांसाहारी।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
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आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने उत्तम आर्जव को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए सरल बनना परम आवश्यक है। कुटिलता के भाव समाप्त करना भी परम आवश्यक। कुटिलता अहंकार एवं आसक्ति से बनते हैं, अतः कुटिलता के भाव स्वयं, स्वजनों, मुनियों एवं समाज के साथ तत्काल त्याग करना परम आवश्यक है।