उत्तम तप धर्म
घी दूध को तपाने पर प्राप्त होता है, हलकी-हलकी आग, सुपात्र(मिट्टी) में तपाने से ज्यादा तथा सुगन्धित घी मिलता है।
ऐसे ही नर से नारायण बनने धीरे-धीरे तप बढ़ाना तथा सुपात्र का निमित्त पाना होगा।
जब तक तप न कर पायें, तब तक मानवता प्राप्त करने का प्रयास करें।
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जिस्म तो खूब संवार लिया, अब रूह का श्रृंगार कीजिए।
शरीर का सौन्दर्य आवरण से, रूह का अनावरण से।
तप से कर्म जलाकर संसार के पिंजरे का विनाश करना होगा।
इच्छा निरोधः तपः ।
मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
ब्र.डॉ नीलेश भैया
One Response
मुनि श्री मंगलानंद महाराज जी ने उत्तम धर्म की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अपनी अनावश्यक इच्छाओं को नियंत्रित करना परम आवश्यक है, इसी को तप धर्म कहते हैं। जिस प्रकार पाषाढ पत्थर से भगवान् बनते हैं, कयोंकि अनावश्यक छिलाई करके निकालना पडता है। अतः अपनी आत्मा से इच्छाओं को निरोध करना परम आवश्यक है।