उत्तम संयम

  • संयम का अर्थ है एक सशक्त सहारे के साथ हल्का सा बंधन ।
    यह बंधन निर्बंध करता है ।
    आज तो हम बिना ब्रेक की गाड़ी में नीचे जाते हुये भी आँखें मींचे हुये बैठे हैं ।
    क्या ब्रेक रूपी संयम के बिना जीवन की गाड़ी सुरक्षित रह पायेगी ?

आचार्य श्री विद्यासागर जी

  • संयम दो प्रकार का है –
    1. इंद्रियों (पाँच इंद्रिय + मन) पर नियंत्रण ।
    2. प्राणियों (वनस्पतिकायिक आदि पाँच प्रकार तथा त्रस – जानवर, मनुष्य आदि) की रक्षा ।
  • मनुष्य पर्याय के लिये ये बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि नारकी और देवों में ये हो ही नहीं सकता तथा त्रियंचों (जानवर) में थोड़ा संयम थोड़ा असंयम ही हो सकता है ।
    पूर्ण संयम तो मनुष्य पर्याय में ही संभव है,
    और मनुष्य पर्याय असंख्यात बार नरक और स्वर्ग में जन्म लेने के बाद मिलती है ।
  • असल में धर्म, चारित्र का ही दूसरा नाम है ।
  • अनंतकाल से संसार का भ्रमण असंयम से ही हो रहा है ।
    एक बच्चा एक वृद्ध को बाग दिखाने ले गया और जिस पेड़ पर जो फल लगा था उसका नाम बताता रहा ।
    एक पेड़ पर फल नहीं लगे थे, वृद्ध ने जब उसका नाम पूछा तो बच्चे का जबाब था –
    बिना फल के पेड़ का नाम (महत्व) क्या !
    संयम/अनुशासन के बिना मनुष्य के जीवन का महत्व क्या ?
  • वर्तमान में वातावरण विपरीत है, फिर भी यथासंभव संयम हम सबको धारण करना चाहिए ।
  • संयम का क्रम –
    1. पहले व्यसनों (शराब, अभक्ष्य आदि) का त्याग करें ।
    2. मूलगुणों (भगवान के दर्शन आदि) का पालन करें ।
    3. बच्चों को शुरू से ही अभ्यास करायें ।
    4. कम से कम संयम की भावना तो रखें और अपनी इच्छा शक्ति मज़बूत करें ।
  • संयम का फल –
    1. संयम रखने से महान कर्मों की निर्जरा (झड़ना) होती है ।
    2. इच्छा शक्ति बढ़ती है ।
    3. सेहत अच्छी रहती है ।
    4. भावना विशुद्ध होती है ।

पं. रतनलाल बैनाड़ा जी – पाठ्शाला (पारस चैनल)

  • संयम मशीन में डालने वाला तेल है,
    और असंयम मशीन में कंकड़ पत्थर ड़ालने जैसा है ।

ड़ाँ. एस. एम. जैन- चिंतन

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2 Responses

  1. Paryushan parv- Day Six- Uttam Sanyam or Supreme Self-restraint
    “There are limits to self-indulgence, none to restraint” Mahatma Gandhi.
    When we defend all living beings with highest power in a cosmopolitan fortitude refraining from all the pleasures provided by the five senses – touch, taste, smell, sight, and hearing; and the sixth – mind it is called Sanyam or self restrain. Our soul in a condition of mithya gyaan or false belief presume that it consists of the body, the Karmas and the sentiments, likes, dislikes, fury, conceit, etc. As a result of this wrong conviction, it imposes pain upon itself and is this the reason of its own desolation These need to be eradicated by contemplating on the true nature of the soul
    .Anupama Jain

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