संयम धर्म
मन,वचन,काय का सदुपयोग ही संयम है ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
2) एक बड़ा ही शरारती बच्चा था। उसे दिन-भर खेलना , टी वी देखना और बढ़िया खाना, पीना ही पसंद था । उसकी माँ उसे बहुत समझाती, पर वह कभी न सुनता।
एक बार उनके घर के सामने से एक पुलिस अधिकारी एक कैदी को लेकर निकला। दोनों के साथ 5-5 सैनिक चल रहे थे, लेकिन जहाँ पुलिस अधिकारी के पांचों सैनिक उसके पीछे चल रहे थे और उसके सभी आदेशों का पालन कर रहे थे, वहीं कैदी को उन पाँचों सैनिकों के पीछे चलना पड़ रहा था और उनके आदेशों का पालन करना पड़ रहा था।
माँ ने बेटे को यह सब दिखाकर पूछा – बताओ , तुम इन दोनों में से क्या बनना चाहते हो ! पुलिस अधिकारी या कैदी ?
बेटे ने कहा- बेशक, मैं पुलिस अधिकारी बनना चाहुँगा।
तब माँ ने उसे समझाते हुए कहा-फिर तो तुम्हें अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण करना पड़ेगा , तभी तो ये तुम्हारी बात मानेंगी , तुम्हारे पीछे चलेंगी और यदि तुमने इन्हें नियंत्रण करना नहीं सीखा तो तुम्हें इनकी बात माननी पड़ेगी , इनके पीछे दौड़ना पड़ेगा और तब तुम अपने मन और इन्द्रियों के कैदी मात्र बनकर रह जाओगे।
2 Responses
Suresh chandra jain
Uttam sanyam parv per sabhi ko panchon indriyon par niyantran karne ka sankalp zaroori hai; tabhi aap sanyam ke maarg par chal sakoge. Sabse pehle man par niyanran karna padega.
Jai Jinendra,
Awesome story. Explained a very important concept of life with a very simple story.
Yah he to Muni Shree Kshama Sagar Ji Maharaj Ji ki viseshta thi. Woh khud bhi bahut he saral the.
Regards,
Anju