उत्तम सत्य
सत्य वह जो स्वयं को तथा औरों को सुख पहुंचाये और पवित्र करे ।
• यदि आप अपने को शरीर या आत्मा में से कोई भी एक मानते हैं, तो यह असत्य है, दोनों मानना सत्य ।
• ज़ुबाँ मौकापरस्त होती है, बुद्धि सत्य सोचती है;
पर हमने लगातार असत्य बोल-बोल कर बुद्धि को भी असत्य सोचना सिखा दिया है ।
• हम जीवन में मनोरंजन बनाये रखने के लिए, सत्य बोलना/ सोचना भी नहीं चाहते ।
• सत्यम् शिवं सुंदरम्
मुनि श्री अविचल सागर जी
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यह कथन सत्य है कि सत्य वह जो स्वयं को तथा औरों को सुख पहुचाये और पवित्र करें। यदि आप अपने शरीर या आत्मा में से कोई एक मानते हैं,तो यह असत्य है, दोनों का मानना सत्य है।
जुबान मोकापररस्त होती है लेकिन बुद्वि सत्य सोचती है।पर हमने असत्य बोल बोल कर बुद्वि को असत्य सोचना सिखा दिया है।हम लोग जीवन में मनोरंजन के लिए सत्य बोलना और सोचना भी नहीं चाहते हैं। अतः जीवन में यदि अनेकांत के भाव होते हैं वहीं सत्य है।