उत्तम सत्य-धर्म

भगवान के अनेक नामों में बहुत से नाम सत्य रूप अवस्थित हैं। क्योंकि उसके सत्य वचन योग होता है (असत्य योग नहीं होता)।
सत् की सत्ता को ना स्वीकारना ही असत्य है।
तत्त्वार्थसूत्र जी में सत्य के लिए पाँच भावनाओं का वर्णन किया है…
हास्य, लोभ, भय और क्रोध भावों से बचने पर ही अनुवीची(आगमानुसार) संभाषण संभव है।
साधु/सज्जन के साथ सत्य वचनों का प्रयोग करें, दुर्जनों से संभाषण नहीं करें।

मुनि श्री मंगल सागर जी

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4 Responses

  1. उत्तम सत्य दशलक्षण व़तो में पाचवा अंग है, अतः जीवन में हमेशा सत्य बोलने का प़यास करना चाहिए, यदि यह सम्भव नहीं तो मोन रहना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है। असत्य बोलकर जो प़सन्न होतें है वह सबसे बडा पाप करते हैं।

  2. 1) पाँच भावनाओं me se 4 ka bataya hai .5th kaunsi hai ?
    2) ‘संभाषण’ ka kya meaning hai, please ?

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