उपकार
“दु:खीजनों को, तज क्यों जाऊँ मोक्ष, मैं सोचता हूँ।”
जैसे माँ सबको खिलाकर खाती है, खिलाकर तृप्त हो जाती है।
पर माँ तो अपने कुछ बच्चों का भला करती है, गुरु सबका।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
“दु:खीजनों को, तज क्यों जाऊँ मोक्ष, मैं सोचता हूँ।”
जैसे माँ सबको खिलाकर खाती है, खिलाकर तृप्त हो जाती है।
पर माँ तो अपने कुछ बच्चों का भला करती है, गुरु सबका।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
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मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि जैसे माँ सबको खिलाकर खाती है, खिलाकर तृप्त हो जाती है! माँ तो अपने बच्चों का भला करती है, लेकिन गुरु तो सबका भला करते हैं! जैन धर्म में उपकार का महत्वपूर्ण स्थान होता है! अतः सब का कल्याण करना है तो हर जीव का उपकार करना है!