जीव का स्वभाव है उर्ध्वगमन तो फिर वह नरक कैसे चला जाता है ?
स्वभाव उर्ध्वगमन है, विभाव नहीं, विभाव से तो वह किसी भी दिशा में जा सकता है ।
जैसे सूखी तुम्बी का पानी के ऊपर रहना, पर मिट्टी लगी सूखी तुम्बी नीचे ही जायेगी ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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विभाव- – स्वभाव के विपरीत परिणमन करना, विभाव से/ कर्म के उदय से होने वाले जीव के रागादि भावों को विभाव कहा गया है।इसी प्रकार विभाव पर्याय का मतलब, पर द़व्य के निमित्त से होने वाली पर्याय विभाव कहते हैं। नरक- – जो जीवों को शीत,उष्ण आदि वेदनाओं के निरंतर आकुलित करते रहते हैं वह नरक कहलाता है अथवा पापी जीवों को अत्यंत दुःख प्राप्त करने वाले नरक हैं अथवा जिस स्थान में जीव रमते नहीं है अथवा परस्पर प्रेम भाव को प्राप्त नहीं होते हैं उसे नरक कहते हैं।
उक्त कथन सत्य है कि जीव का स्वभाव उर्धगमन है लेकिन विभाव नहीं, विभाव से किसी भी दिशा में जा सकता है। अतः जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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विभाव- – स्वभाव के विपरीत परिणमन करना, विभाव से/ कर्म के उदय से होने वाले जीव के रागादि भावों को विभाव कहा गया है।इसी प्रकार विभाव पर्याय का मतलब, पर द़व्य के निमित्त से होने वाली पर्याय विभाव कहते हैं। नरक- – जो जीवों को शीत,उष्ण आदि वेदनाओं के निरंतर आकुलित करते रहते हैं वह नरक कहलाता है अथवा पापी जीवों को अत्यंत दुःख प्राप्त करने वाले नरक हैं अथवा जिस स्थान में जीव रमते नहीं है अथवा परस्पर प्रेम भाव को प्राप्त नहीं होते हैं उसे नरक कहते हैं।
उक्त कथन सत्य है कि जीव का स्वभाव उर्धगमन है लेकिन विभाव नहीं, विभाव से किसी भी दिशा में जा सकता है। अतः जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।