एकत्व

हम किसी के साथ रहते हैं/चलते हैं, यह संयोग है ।
वह हमें सहयोग देता है तो उसे हम साथी कहते हैं ।
पर क्या वह साथी भी हमारे जन्म मरण में साथ दे पाता है ?
ऐसा तो निगोदियों में ही होता है, पर निगोदिया एक दूसरे का दु:ख कम या Share कर पाते हैं ??
साथी का तो हमने भ्रम पाल लिया है ।
हम सब अकेले हैं तो डर कैसा ?
भीड़ में भी अकेलेपन का आनंद लें ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

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