एक इंद्रिय जीवों के लिये भी →
वीर्यांतराय + मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम + शरीर नामकर्म तथा जाति नामकर्म के उदय लगते हैं।
सब में प्रवृत्तियाँ भी होती हैं जैसे पानी की बूँदों का मिलनादि।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/22)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने एकेंद़िय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने एकेंद़िय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।