करण

करण यानि परिणाम/ भाव,
पर व्यवहार में “करण-परिणाम” का प्रयोग 6 बार होता है →
1. प्रथमोपशम
2. क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
3. विसंयोजना
4. द्वितीयोपशम
5. चारित्र मोहनीय उपशम
6. क्षय करते समय

7वें गुणस्थान को अध:करण, 8वें को अपूर्वकरण, 9वें को अनिवृत्ति करण कहते हैं।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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One Response

  1. मुनि महाराज जी ने करण का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः जीवन में साधुओं द्वारा गुणस्थान बढाने का प़यास करते हैं, अतः श्रावकों को भी करण की भावना रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!

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