कर्म- – जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब उसकी क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है। कर्म तीन प्रकार के होते हैं द़व्य कर्म, भाव कर्म और नो कर्म। अतः यह कथन सत्य है कि एक समय वाला कर्मबंध बिना आवाधा काल के होता है। जीवन में कर्म बंध के लिए मन वचन काय का ध्यान रखना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
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कर्म- – जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है वह सब उसकी क़िया या कर्म है। कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है और संसार में भटकता है। कर्म तीन प्रकार के होते हैं द़व्य कर्म, भाव कर्म और नो कर्म। अतः यह कथन सत्य है कि एक समय वाला कर्मबंध बिना आवाधा काल के होता है। जीवन में कर्म बंध के लिए मन वचन काय का ध्यान रखना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।