कर्मोदय / पुरुषार्थ

कर्मोदय सताता/भटकाता नहीं कुछ समय के लिये अटका सकता है।
कर्मोदय में पुरुषार्थ की कमी/रागद्वेष करने से भटकन/दु:ख होता है।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Share this on...

One Response

  1. कर्म का तात्पर्य जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ क़िया या कर्म होता है। कर्म के द्वारा जीव परतंत्र होता है,जो संसार में भटकाता है। पुरुषार्थ का तात्पर्य चेष्टा या प़यास करना होता है, इसमें धर्म,अर्थ,काम एवं मोक्ष होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि कर्मोदय सताता एवं भटकाता है एवं कुछ समय के लिए अटका सकता है। अतः कर्मौदय में पुरुषार्थ की कमी एवं राग द्वेष से भटकन एवं दुःख होता है। अतः जीवन में धर्म और मोक्ष में पुरुषार्थ करने से ही जीवन का कल्याण हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

July 20, 2022

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930